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Monthly Archives: ઓક્ટોબર 2019

भगवान् कृष्ण और भीष्म का अंतिम सवाद


Bhishma pitamah

महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फटे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे और वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी …. ! गिद्ध , कुत्ते , सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में द्वापर का सबसे महान योद्धा “देवव्रत” (भीष्म पितामह) शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था — अकेला …. !

तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची , “प्रणाम पितामह” …. !!

भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी , बोले , ” आओ देवकीनंदन …. ! स्वागत है तुम्हारा …. !! मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था” …. !!

कृष्ण बोले, “क्या कहूँ पितामह ! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप” …. !

भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले,” पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव … ? उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है” …. !

कृष्ण चुप रहे …. !

भीष्म ने पुनः कहा , “कुछ पूछूँ केशव …. ? बड़े अच्छे समय से आये हो …. ! सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय ” …. !!

कृष्ण बोले – कहिये न पितामह ….!

एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न …. ?

कृष्ण ने बीच में ही टोका , “नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं … मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह … ईश्वर नहीं ….”

भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े …. ! बोले , ” अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे …. !! “

कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले …. ” कहिये पितामह …. !”

भीष्म बोले , “एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या …. ?”

“किसकी ओर से पितामह …. ? पांडवों की ओर से …. ?”

” कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था !? आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या …. ? यह सब उचित था क्या …. ?”

“इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह …. ! इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ….. !! उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन …. !! मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह …. !!”

“अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण …. ? अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है …. ! मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण …. !”

“तो सुनिए पितामह …. ! कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ …. ! वही हुआ जो हो होना चाहिए …. !”

“यह तुम कह रहे हो केशव …. ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ….? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ….. ? “

इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह, पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है …. ! हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है …. !! राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था …. ! हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह …. !!”

” नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो …. !”

” राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह …. ! राम के युग में खलनायक भी ‘ रावण ‘ जैसा शिवभक्त होता था …. !! तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण जैसे सन्त हुआ करते थे ….. ! तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे …. ! उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था …. !! इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया …. ! किंतु मेरे युग के भाग में में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं …. !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह …. ! पाप का अंत आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो …. !!”

“तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव …. ? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा …. ? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ….. ??”

” भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह …. ! कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा …. ! वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा …. नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा …. ! जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह…. ! तब महत्वपूर्ण होती है विजय , केवल विजय …. ! भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह….. !!”

“क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव ? और यदि धर्म का नाश होना ही है, तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ?”

“सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह! ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ….! केवल मार्ग दर्शन करता है … सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है …. ! आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न …. ! तो बताइए न पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ….. ? सब पांडवों को ही करना पड़ा न …. ? यही प्रकृति का संविधान है …. !
युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से …. ! यही परम सत्य है ….. !!”

भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे …. ! उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी …. ! उन्होंने कहा – चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है …. कल सम्भवतः चले जाना हो … अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण …. !”

कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था…. !

जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ….।।

धर्मों रक्षति रक्षितः

 

ટૅગ્સ:

पूछो इन जीत से तेरी रज़ा क्या है ।


खुली आंख से सपने सज़ा लो,
इन ख्यालो में बसा क्या है ।

अथक परिश्रम तुम कर लो,
इन चापलूसी में रखा क्या है ।

भटको मत, लक्ष्य का पीछा करो,
मंजिल से पूछो तेरा पता क्या है ।

राहें बनती – बिगड़ती जायेगी,
पगडंडियों से घबराना क्या है ।

उड़ते रहो उन्मुक्त परिंदे की तरह,
पंछी से पूछो इतराना क्या हैं ।

हर तरफ से रुख मोड़ लो अपनी ओर,
हवाओ से पूछो तेरी दिशा क्या है ।

पहुंच जाओ उन शिखर तक,
अब चट्टानों से टकराना क्या है ।

थको मत, रुको मत, हिम्मत न हारो,
पूछो इन जीत से तेरी रज़ा क्या है ।

 

 
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Posted by on ઓક્ટોબર 30, 2019 માં Poems / कविताए

 

तुम से है ।


मेरा वजूद मुक़म्मल तुम से है ।
मेरी हर एक ग़ज़ल तुम से है ।

मेरा मुजमें कुछ ना बचा अब,
जिंदगी मेरी सफल तुम से है ।

जुदा हो कर कहाँ जाऊँगा में,
मेरा तो हर एक पल तुम से है ।

धड़कता है दिल तुम्हारे होनेसे,
मेरी आज, मेरा कल तुम से है ।

खुशियों की वजह तुम ‘#अख़्तर’
परेशानियों का हल तुम से है ।

 

 
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Posted by on ઓક્ટોબર 29, 2019 માં Dr. Akhtar Khatri, Poems / कविताए

 

होगा ही


गरीब का ख्वाब तो होगा ही,
धन नही सम्मान तो होगा ही,

सदियो पुराना जो है इंसान,
कहीं से ख़राब तो होगा ही;

मौसम देखो कितना सर्द है !
जाम ए शराब तो होगा ही।

पाला है शौक गुलफाम का;
हाथ में गुलाब तो होगा ही,

तकलिफ लबों को क्युं देते हो!
नैनो में भी जवाब तो होगा ही,

बिखरती सँभलती ही जिंदगी है,
फिर भी जीने का ख्वाब होगा ही।।

एक पल में सब मिले मुमकिन नही,
पर उम्मीदे परस्त् इंसान होगा ही।।

– पायल उनडकट

 
1 ટીકા

Posted by on ઓક્ટોબર 27, 2019 માં Payal Unadkat

 

शुभ दीपावली


अपने अंदर का स्नेह जला कर,
दीपक उजियारा करता है ।
ज्योति-किरण कितनी भी लघु हो,
पर उस से अंधियारा ड़रता है ।

आओ हर दीपक-बाती के,
मन में सोई जोत जलाएँ ।
मानवता की राह प्रकाशित,
करने वाले दीप जलाएँ ।

सूरज़ आने के पदचापों की,
आहट नहीं सुनाई देती।
पर उसके आ जाने भर से,
रजनी नहीं दिखाई देती।

कोई भी राह न रहे अँधेरी,
आओ ऐसी ज्योति जलाएँ ।
आस्था और उल्लास हृदय में,
भर आशा का सूर्य उगाएँ ।

लौ से लौ मिल जाए मन की,
सारे जग में प्रकाश भर जाए ।
अन्धकार साम्राज्य समेटे,
लौट के अपने घर को जाए ।

अमावस की नेम-प्लेट पर,
लिखें पूर्णमासी का सा उजियारा ।
प्रेम-दीप की जगमग से हम,
ज्योतिर्मय कर दें जग सारा॥

।। शुभ दीपावली ।।

 
 

ટૅગ્સ: ,

Shayari Part 40


बिखर जाने के बाद भी नई शुरुआत हो सकती है,
ख़ामोश रह कर भी मुहब्बत की बात हो सकती है ।

#अख़्तर_खत्री

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तुम्हारी तपिश से पिघल जाए वजूद ये हमारा
कभी तो निगाहों से तुम हमको ऐसे छुआ करो।

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कद बढ़ा नहीं करते ,ऐड़ियां उठाने से,

उचाइयां तो मिलती हैं ,सर झुकाने से।

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क़लम जब तुमको लिखती है,

दख़ल-अंदाजी फ़िर हम नहीं करते।

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ग़ज़ल कैसे हुई अल्लाह जाने
मैं तो तुमसे बात करना चाहता था।

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सुलह कर लो..
अपनी किस्मत से..,

एक वही है..,
जो बिकती नहीं है बाजार में…

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बहती जा

दुःख – दर्द की इन लहरों के बीच
डूबती तैरती मैं
कुछ पल जीने की
कोशिश कर लेती हूँ
जीवन का मतलब ही बहना है
और फिर मैं तो सरिता हूँ

शिकायतों के पिटारे ना खोल
मुसीबतों के पहाढ़ ना बना
दुख बायाँ ना कर
बस बहती जा

दर्द ना बाँट किसी से
अपने ज़ख़्म ना दिखा
इन आहों को दबा
ये आँसू ना बहा
बस बहती जा ….

-सरिता सागर

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जब भी अकेली होती हूँ तो एक बात सोचती हूँ…

आखिर मुझे क्या पाना है जो मैं खुद को खो रही।

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अब यकीन का हाल, ये बन चुका है के..
डर घावों से नहीं, लगावों से लगने लगा है…!!

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सबूत तो गुनाहो के होते है,

बेगुनाह मोहब्बत का क्या सबूत दें ?

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नज़र उतार लूँ, या नज़र में उतार लूँ….

तुम आ जाओगे यूँ ही, या फिर से पुकार लूँ…

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जिस परिंदे को अपनी उड़ान से फुरसत ना थी कभी,

आज हुआ तनहा तो मेरी ही दीवार पे आ बैठा !!

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अपनी बद-दुआ अपने पास ही रखो सनम,
मुझे इश्क़ है खुद ही मर जाऊँगा…

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हर जगह इत्र ही
नहीं महका करते..

कभी कभी शख्सियत भी खुशबू दे जाती है..

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इश्क़…तूने बड़ा नुकसान किया है मेरा…

मैं तो उस शख़्स से नफरत भी नहीं कर सकता।

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अब यकीन का हाल,
ये बन चुका है के..

डर घावों से नहीं, लगावों से लगने लगा है…

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जिसके सहारे जिन्दगी गुजर जाये,

आजकल उस वहम की तलाश में हूँ मैं !!

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तेरा खयाल था
वो भी कमाल था।

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इत्तफ़ाक़ से तो नहीं,
टकराये हम सब ……
थोड़ी ख्वाहिश तो
खुदा की भी होगी …

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रखा करो नजदीकियां…

ज़िंदगी का भरोसा नहीं…

फिर कहोगे,

चुपचाप चले गए और बताया भी नहीं…

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सुन….
चाहत सिर्फ दोस्ती की
ही थी मेरी. .

ना जाने कब तेरी मासूमियत
से मोहब्बत हो गई…

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कुछ तो उधार बाकी है, आपका मुझ पर….

वरना यूँ ही नहीं जुड़ते शब्दो के धागे…

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समझे बिना किसी को पसंद ना करो और समझे बिना किसी को खो भी मत देना।

क्योंकि फिक्र दिल में होती हैं शब्दों में नहीं और गुस्सा शब्दों में होता हैं दिल में नहीं॥

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हालात ने तोड़ दिया हमें कच्चे धागे की तरह,
वरना हमारे वादे भी कभी ज़ंजीर हुआ करते थे।

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जिसे जाना होगा ,किसी न किसी बहाने से चला ही जायेगा ,
जिसे देना होगा साथ , वो हर हाल में साथ निभाएगा।

*******

जब रिश्ता नया होता है,
तो लोग बात करने का बहाना ढ़ुढ़ते है,
और जब वही रिश्ता पुराना हो जाता है,
तो लोग दूर होने का बहाना ढूढ़ते है।

*******

मुझे यकीन है मोहब्बत उसी को कहते हैं,
कि जख्म ताज़ा रहे और निशान चला जाये।

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तुम्हारे पास ही तो हैं ज़रा, ख्याल करके देखो ।

आँखों की जगह, दिल का इस्तेमाल करके देखो।।

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कभी मतलब के लिए, तो कभी बस दिल्लगी के लिए,

हर कोई मोहब्बत ढूँढ़ रहा है यहाँ,
अपनी ज़िन्दगी के लिए।

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हाथ पकड़ा
बात की
फिर गले लगा लिया
.
.
तीनो खंजर एक साथ मारे थे जालीम ने..!!

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रूठ जाने के बाद
गलती चाहे जिसकी भी हो,
बात शुरू वही करता है जिसको
आपसे बेपनाह मोहब्बत है !!

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ऐसा नहीं की जिन्दगी मे कोई आरज़ू ही नहीं..!!

पर वो ख्वाब पूरा कैसे करू , जिस मे तू ही नहीं….!!!!

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लकीरें तो हमारी भी बहुत ख़ास है ,

तभी तो आप जैसे लोग हमारे पास है।

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नींद सी रहती है, हल्का सा नशा रहता है,

रात दिन आंखों में एक चेहरा बसा रहता है..!!

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लगेगी जब ठंड हमको,

हम तेरे खत सरेआम जलायेंगे।

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सहम सी गयी है’ ख्वाहिशें..

जरूरतों ने शायद उनसे’ ऊँची आवाज़ में बात की होगी…

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क्या हो कि कोई पढ़ने लगे तुम्हें,

और समझ आ जाऊं मैं।

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इस कदर तुम्हारे भीतर समा जाऊं मैं ,

कि देखे तुझे अगर कोई तो नज़र आऊं मैं ।

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लिखते जा रहे हो साहब,..

मोहब्बत हो गई , या खो गई है ?

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अनुभव कहता है

खामोशियाँ ही बेहतर हैं,

शब्दों से लोग रुठते बहुत हैं…

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कोई असर ना हुआ,दिल के अर्जी का,
शायद आ गया जमाना,खुदगर्जी का ।

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हम तो मज़ाक मे भी, किसी को दर्द देने से डरते है..!
ना जाने लोग कैसे सोच समझकर,दिलों स खेल जाते है..!!

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महोब्बत पहले अन्धी थी,
फिर उसने अपना इलाज़ करवाया,

अब महोब्बत गाड़ी, बंगला, शक्ल, बैंक बेलेंस, सब देखती है।

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झूठ बोलने के लिए ज़ुबाँ चाहिए !
सच कहने के लिए आँखें काफ़ी हैं !!

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हर घूँट में तेरी याद जमी है…

कैसे कह दूँ मैं चाय में कमी है…!!

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संभल कर चल नादान,
ये इंसानों की बस्ती हैं…

ये तो रब को भी आजमा लेते हैं,
तेरी क्या हस्ती हैं…!!

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उम्मीद कभी हमें छोड़ कर नहीं जाती …

जल्दबाजी में हम ही उसे छोड़ देते हैं …

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इस महफ़िल में भी सभी एक दूसरे के हौसले हैं; इसमें कोई शक नहीं है हमें…!

बस ये जानकर दुख हुआ यारों; किसी अनुचित को महफ़िल में प्यार से टोकने का हक नहीं है हमें…!!

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सारा दिन जलने का भरपूर सिला देता है,

वक़्त सूरज को भी हर रोज़ बुझा देता है ।

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इंसान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले.,
और परिंदे सोचते है कि, रहने को घर मिले…!

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धोखा भी बादाम की तरह है,

जितना खाओगे उतनी अक्ल आती है ….

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मुझे गिलास के अन्दर ही कै़द रख वर्ना,
मैं सारे शहर का पानी शराब कर दूँगा ।।

महाजनों से कहो थोड़ा इन्तजार करें,
शराबख़ाने से आकर हिसाब कर दूँगा ।।

“राहत इंदौरी”

*******

तुम इस कदर याद आ रहे हो,
जैसे ये रात मेरी आख़री रात हो !!

*******

समंदर बेबसी अपनी किसी से कह नहीं सकता,

हजारों मील तक फैला है, फिर भी बह नहीं सकता….

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दोष कांटो का कहाँ, हमारा है जनाब,

पैर हमने रखा, वो तो अपनी जगह पे थे।

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इस छोटी सी जिंदगी में बढ़ा सा सबक मिला है जनाब,
रिश्ता सब से रखो पर उम्मीद किसी से नही।

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कल शीशा था, सब देख-देख कर जाते थे।
आज टूट गया, सब बच-बच कर जाते हैं।

समय के साथ,
देखने और इस्तेमाल का नजरिया बदल जाता है।

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पी थी जिस कप में उन्होने चाय एक रोज,
उस कप मे मै आज भी चीनी नही मिलाता।

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ये शायराना अंदाज है
जनाब
यहाँ आग माचिस से नही
शायरियों से लगती है।

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अमीर तो हर गली में मिल जाते है,
मुश्किल तो जमीर वालों को ढूंढना है।

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एक इंच भी छोडने को मन नहीं करता,,

किसी झगड़े की जमीन सी लगती हो तुम,,

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चादर से पैर तभी बाहर आते हैं,

जब “उसूलों” से बड़े “ख्वाब” हो जाते हैं।

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कितना कुछ कहना होता है…

चुप जब भी रहना होता है।

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रूठे रिश्ते ..और नाराज़ लोग ..सबूत है इस बात के ,
कि ज़ज़्बात.. अब भी ज़ुड़े रहने की ..ख़्वाहिश रखते हैं..

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हम भी माचिस की तीली जैसे थे,
जिसके हुए बस एक बार हुए…

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तुम ठहर जाओ…

वक़्त को जाने दो।

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शतरंज सी जिन्दगी में कौन किसका मोहरा है,
आदमी एक है मगर सबका किरदार दोहरा है।

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अब तो सिगरेट भी हमसे सिकायत करने लगी…

बेवफाई उन्होंने की और जला हमें रहे हो !!

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इक परिंदा अभी उड़ान में हैं,

तीर हर शख़्स की कमान में है।

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एक परवाने ने हमसे पूछा ; जलने और सुलगने का फर्क जानते हो ?

हमने हसकर कहा : इश्क़ में जलते है और तन्हाइयों में सुलगते है !!!!

-आसिम !!!

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भूल जाने की उम्र बीत गई…

आओ एक दूसरे को याद करें…

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पूछते हैं वो की मेरा परिचय क्या है.?

मैंने कहा पढते रहिए शायद हो जाएगा.!!

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मुझे मालूम नहीं हुश्न की तारीफ ,

मगर मेरी नजर में हसीन वो है जो तुझ जैसा हो ..

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तुझे पाकर भी पा न सके हम।
खो भी देंगे तो बुरा क्या होगा।।

*******

#ChetanThakrar

#+919558767835

 
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Posted by on ઓક્ટોબર 26, 2019 માં Hindi Shayari

 

ટૅગ્સ:

मत करना


सिला ना मिले तो गिला मत करना,
ख़ुशी से किसी की जला मत करना ।

मंज़िल यह रास्ता ही है, समझ लो,
आंखे बंद करके चला मत करना ।

मुक़द्दर में लिखा, ना छिनेगा कोई,
ज़रा देरी से मिले, डरा मत करना ।

तुमसे मिले और जो मुस्कुराये नहीं,
उन्हें तुम बार बार मिला मत करना ।

ऊंच नीच तरीका है उसका, ‘अख़्तर’
ज़िन्दगी से तुम लड़ा मत करना ।

#अख़्तर_खत्री

 
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Posted by on ઓક્ટોબર 26, 2019 માં Dr. Akhtar Khatri

 

ટૅગ્સ: ,

क्रोध के दो मिनट


एक युवक ने विवाह के दो साल बाद परदेस जाकर व्यापार करने की इच्छा पिता से कही । पिता ने स्वीकृति दी तो वह अपनी गर्भवती पत्नी को माँ-बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार करने चला गया । परदेश में मेहनत से बहुत धन कमाया और वह धनी सेठ बन गया । सत्रह वर्ष धन कमाने में बीत गए तो सन्तुष्टि हुई और वापस घर लौटने की इच्छा हुई । पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी और जहाज में बैठ गया ।

उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था । सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि
इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नही है । मैं यहाँ ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर कोई लेने को तैयार नहीं है । सेठ ने सोचा ‘इस देश में मैने बहुत धन कमाया है, और यह मेरी कर्मभूमि है, इसका मान रखना चाहिए !’

उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई । उस व्यक्ति ने कहा- मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है । सेठ को सौदा तो महंगा लग रहा था.. लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 स्वर्ण मुद्राएं दे दी ।

व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया- “कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रूककर सोच लेना ।”

सेठ ने सूत्र अपनी किताब में लिख लिया । कई दिनों की यात्रा के बाद रात्रि के समय सेठ अपने नगर को पहुँचा । उसने सोचा इतने सालों बाद घर लौटा हूँ तो क्यों न चुपके से बिना खबर दिए सीधे पत्नी के पास पहुँच कर उसे आश्चर्य उपहार दूँ । घर के द्वारपालों को मौन रहने का इशारा करके सीधे अपने पत्नी के कक्ष में गया तो वहाँ का नजारा देखकर उसके पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई । पलंग पर उसकी पत्नी के पास एक युवक सोया हुआ था ।

अत्यंत क्रोध में सोचने लगा कि मैं परदेस में भी इसकी चिंता करता रहा और ये यहां अन्य पुरुष के साथ है दोनों को जिन्दा नही छोड़ूगाँ क्रोध में तलवार निकाल ली । वार करने ही जा रहा था कि उतने में ही उसे 500 स्वर्ण मुद्राओं से प्राप्त ज्ञान सूत्र याद आया- कि कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट सोच लेना । सोचने के लिए रूका । तलवार पीछे खींची तो एक बर्तन से टकरा गई ।

बर्तन गिरा तो पत्नी की नींद खुल गई । जैसे ही उसकी नजर अपने पति पर पड़ी वह ख़ुश हो गई और बोली- आपके बिना जीवन सूना सूना था । इन्तजार में इतने वर्ष कैसे निकाले यह मैं ही जानती हूँ । सेठ तो पलंग पर सोए पुरुष को देखकर कुपित था । पत्नी ने युवक को उठाने के लिए कहा- बेटा जाग । तेरे पिता आए हैं ।

युवक उठकर जैसे ही पिता को प्रणाम करने झुका माथे की पगड़ी गिर गई । उसके लम्बे बाल बिखर गए । सेठ की पत्नी ने कहा- स्वामी ये आपकी बेटी है । पिता के बिना इसके मान को कोई आंच न आए इसलिए मैंने इसे बचपन से ही पुत्र के समान ही पालन पोषण और संस्कार दिए हैं । यह सुनकर सेठ की आँखों से अश्रुधारा बह निकली । पत्नी और बेटी को गले लगाकर सोचने लगा कि यदि आज मैने उस ज्ञानसूत्र को नहीं अपनाया होता तो जल्दबाजी में कितना अनर्थ हो जाता । मेरे ही हाथों मेरा निर्दोष परिवार खत्म हो जाता ।

ज्ञान का यह सूत्र उस दिन तो मुझे महंगा लग रहा था लेकिन ऐसे सूत्र के लिए तो 500 स्वर्ण मुद्राएं बहुत कम हैं ।’ज्ञान तो अनमोल है ‘

इस कहानी का सार यह है कि जीवन के दो मिनट जो दुःखों से बचाकर सुख की बरसात कर सकते हैं । वे हैं – ‘क्रोध के दो मिनट’

 

सम्मान का ऑक्सीजन


रविवार का दिन था| अखबार पढ़ने के बाद कमलेश जी बरामदे में बैठे रेडियो पर गानें सुन रहे थे| एकाएक उनके कानों में इकतारे की धुन के साथ साथ लोक संगीत के बोल घुल गये| आँखे खोलकर उन्होने आवाज की दिशा में देखा| दरवाजे पर खड़ा एक बूढ़ा याचक कुछ गाते हुए इकतारा बजा रहा था| वह दरवाजे तक गये और उसे वहीं बाहर बने चबूतरे पर बैठने के लिए कहा|

“बहुत अच्छा गाते हो| कहाँ से हो?” उसके बैठते ही उन्होनें सवाल किया|

“बहुत दूर से हैं बाबूजी| हमारे पुरखे अपने जमाने के बहुत बड़े लोक कलाकार थे| बस उनसे ही थोड़ा बहुत सीख लिया|” बूढ़े ने इज्जत मिलते ही अपना परिचय दिया|

“तो यहाँ शहर में कैसे..?” कमलेश जी ने अगला प्रश्न किया|

“अब इस कला की कहाँ कोई कद्र है बाबूजी ? गाँव में पेट भरना मुश्किल हो गया और कोई दूसरा काम हमें आता नही इसलिए यहाँ शहर में इसके सहारे माँगकर गुजारा कर लेते हैं|” बूढ़े ने माथे का पसीना पूछा|

“तो सुना दो कुछ…” कहते हुए कमलेश जी भी वहीं चबूतरे पर बैठ गये|

बूढ़े ने पहले तो हैरानी से देखा फिर आश्वस्त होने पर संगीत शुरू किया| उसे गाते देख उसके आसपास और लोग भी जुड़ने लगे| अपनी आँखें मूंदकर वह लगभग आधे घंटे तक अपने इकतारे के साथ लोक धुनें बिखेरता रहा| समाप्ति पर आँखे खोली तो आसपास तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी| कमलेश जी ने जेब से निकालकर उसे पचास का नोट देना चाहा|

बूढ़े ने हाथ जोड़कर मना करते हुए कहा ‘बाबूजी, आया तो पैसों की आस में ही था मगर अब पैसे नही लूँगा|’

“अररे मगर…तुम पैसों के लिए ही तो यह बजाते हो|”

बूढ़े की आखों में आँसू आ गये| इकतारे को माथे से लगाते हुए वह रूँधे गले से इतना ही कह पाया “ज्यादा नही तो कम..पैसे तो रोज मिल ही जाते हैं| मगर आज एक कलाकार को उसका सम्मान मिला है बाबूजी..”

कमलेश जी ने नोट उसके कुर्ते की जेब में रखते हुए कहा “रख लो काम आयेगें…और हाँ, अगले रविवार को भी जरूर आना..”

बूढ़े की आँखे बता रही थी कि सम्मान का ऑक्सीजन मिलते ही उसकी मरती हुई कला उसमें दोबारा जीवित हो रही थी|

 
1 ટીકા

Posted by on ઓક્ટોબર 24, 2019 માં SHORT STORIES / लघु-कथाए

 

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धनतेरस और दिवाली मैसेज


आने वाले साल की दुआ में मुझे क्या क्या चाहिए
यारो के चेहरे पर ख़ुशी और लबो पर हसी चाहिए

मिले ना मिले मुझे अनमोल ख़ज़ाने
बेपनाह प्यार के तोहफे चाहिए

कोई लेना देना नहीं मुझे दुनिया की भीड भाड़ से
चारो ओर दोस्तो के मेले चाहिए

चमकते दमकते नज़ारो का क्या करू
दिल के गरीबखाने में तस्वीरें यार चाहिये

शोर शराबा पार्टी शार्टी से जी नहीं भरता
खामोश लबो पर जिगरजान की मुस्कान चाहिए

दूर से अच्छी लगती है बड़ी बड़ी ईमारतें
छोटे से कमरे मे साथ हसने वाला यार चाहिए

लम्बी ज़िन्दगी का होता है सबको अरमान
बिता सकु यारो के साथ वोह दिन चार चाहिए

बस इससे ज़्यादा मुझे और क्या चाहिए
नए साल की शुरूआत हो तब साथ में पुराने यार चाहिए !

आसिम !

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जीवन में हर ऊचाई प्राप्त करो आप,
सदा अपनों के साथ रहो आप,
लक्ष्मी माँ अपनी कृपा रखे आप पर
और हमेशा खुशहाल रहो आप.
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाये !
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धन की बरसात हो,
खुशियों का आगाज हो,
आपको जीवन का हर सुख प्राप्त हो
माता लक्ष्मी का आपके घर वास हो !
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाये !
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जीवन में हर ऊचाई प्राप्त करो आप,
सदा अपनों के साथ रहो आप,
लक्ष्मी माँ अपनी कृपा रखे आप पर
और हमेशा खुशहाल रहो आप.
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाये !
*******
सोने का रथ, चांदनी की पालकी,
बैठकर जिसमें है माँ लक्ष्मी आई,
देने आपको और आपके पूरे परिवार को
धनतेरस की बधाई….!!!
*******
दिलो में खुशियाँ, घर में सुख का वास हो,
हीरे मोती से आपका ताज हो,
मिटे दूरियां, सब आपके पास हो,
ऐसा धनतेरस आपका इस साल हो।
*******
धनतेरस की हैं सबको बधाई,
सदा रहे घर में लक्ष्मी जी की परछाई।
प्रेम मोहब्बत से रहना सब,
क्युकी धन के रूप में बरसता है रब।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाये !
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दिलो में खुशियाँ, घर में सुख का वास हो,
हीरे मोती से आपका ताज हो,
मिटे दूरियां, सब आपके पास हो,
ऐसा धनतेरस आपका इस साल हो।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाये !
*******
सोने और चाँदी की बरसात निराली हो,
घर का कोई कोना दौलत से न खाली हो,
सेहत भी रहे अच्छी चेहरे पे लाली हो,
हँसते रहे आप खुशहाली ही खुशहाली हो।
हैप्पी दीवाली… शुभ दीवाली ।
*******
मुस्कुराते हँसते दीप तुम जलाना
जीवन में नयी खुशियो को लाना
दुःख दर्द अपने भूल कर,
सबको गले लगाना
और प्यार से दिवाली मनाना..!!!
!! दिवाली की शुभकामनाएं !!
*******
खूब मीठे मीठे पकवान खाएं,
सेहत मैं चार चाँद लगायें,
लोग तो सिर्फ चाँद तक गए हैं ,
आप उस से भी ऊपर जाएँ ,
!! दीवाली की शुभकामनायें !!
*******
लक्ष्मी आएगी इतनी की सब जगह नाम होगा,
दिन रात व्यपार बड़े इतना अधिक काम होगा,
घर परिवार समाज मैं बनोगे सरताज,
ये ही कामना है हमारी आप के लिए।
!! दीवाली की ढेरो शुभकामनाएं !!
*******
दीप जगमगाते रहें
सबके घर झिलमिलाते रहें
साथ हों सब अपने
सब यूँही मुस्कुराते रहें
!! दिवाली के त्यौहार की शुभकामनाएं !!
*******
हर दम खुशिया हो साथ,
कभी दामन ना हो खाली।
हम सब की तरफ से,
विश यू हैप्पी दिवाली।
*******
दीपक की रौशनी, पटाखों की आवाज,
सूरज की किरणे,खुशियों की बोछार,
चन्दन की खुशबु, अपनों का प्यार,
मुबारक हो आप को दीवाली का त्यौहार..
*******
है रौशनी का त्यौहार, लाये हर चेहरे पर मुस्कान,
सुख और समृधि की बहार ,समेट लो सारी खुशियाँ,
अपनों का साथ और प्यार.
इस पावन अवसर पर आप सभी को दीवाली का प्यार..
*******
दीपों का उजाला, पटाकों का रंग,
धुप की खुशबु, प्यार भरी उमंग,
मिठाई का स्वाद, अपनों का प्यार,
मुबारक हो आपको दिवाली का त्यौहार।
*******
दीप जलते रहे जगमगाते रहे,
हम आपको-आप हमें याद आते रहे,
जब तक ज़िन्दगी है दुआ है हमारी,
आप फूलो की तरह मुस्कुराते रहे
!!विश यू हैप्पी दीपावली !!
*******
रात को जल्दी से नींद आ गयी,
सुबह उठे तो दिवाली आ गयी,
सोचा विश करूँ आप को दिवाली
देखा तो आपकी मिस कॉल पहले से ही आ गयी
!! Happy Deepavali !!
*******
इस दिवाली जलाना हज़ारो दिये
खूब करना उजाला ख़ुशी के लिये
एक कोने में एक दिया जलाना जरूर
जो जले उम्र भर हमारी दोस्ती के लिये
!! Happy Diwali Dosto !!
*******
दीप जलते रहे मन से मन मिलते रहे
गिले सिकवे सारे मन से निकलते रहे
सारे विश्व मे सुख-शांति की प्रभात ले आये
ये दीपो का त्योहार खुशी की सोंगात ले आये
!! Happy Deepavali !!
*******
सुख समृधि आपको मिले इस दीवाली पर,
दुख से मुक्ति मिले इस दीवाली पर,
माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद हो आपके साथ
और लाखों खुशिया मिले इस दीवाली पर.
!! शुभ दीपावली !!
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Posted by on ઓક્ટોબર 24, 2019 માં Very Nice

 

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Brand New Version of मधुशाला


मैं औऱ मेरी तनहाई,

अक्सर ये बाते करते है..

ज्यादा पीऊं या कम,

व्हिस्की पीऊं या रम।

मैं और मेरी तन्हाई,

या फिर तोबा कर लूं..
कुछ तो अच्छा कर लूं।
हर सुबह तोबा हो जाती है,
शाम होते होते फिर याद आती है।
क्या रखा है जीने में, असल मजा है पीने में।

फिर ढक्कन खुल जाता है,
फिर नामुराद जिंदगी का मजा आता है।
रात गहराती है,
मस्ती आती है।
कुछ पीता हूं,
कुछ छलकाता हूं।

कई बार पीते पीते,
लुढ़क जाता हूं।
फिर वही सुबह,
फिर वही सोच।
क्या रखा है पीने में,
ये जीना भी है कोई जीने में!
सुबह कुछ औऱ,
शाम को कुछ औऱ।

थोड़ा गम मिला तो घबरा के पी गए,
थोड़ी ख़ुशी मिली तो मिला के पी गए,
यूँ तो हमें न थी ये पीने की आदत…
शराब को तनहा देखा तो तरस खा के पी गए।

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रोशन है


तसव्वुर से उस के मेरा आशियाँ रोशन है,
जैसे की इस सेहरा में एक दरिया रोशन है ।

कल की फ़िक्र क्यूं करेगा, अंधेरों में भी वो,
उस गरीब के चूल्हे में तो आसमां रोशन है ।

पुकार लेती है अपनी मां को अक्सर दर्द में,
दुल्हन के दिल में अब भी मायका रोशन है ।

भटक गया फ़िर भी भटकेगा नहीं मुसाफ़िर,
हर कदम पर रास्ते पर वो कारवाँ रोशन है ।

ज़ुबान पर सच्चाई, दिल में न डर किसी का,
‘अख़्तर’ रोम रोम में मेरा ख़ुदा रोशन है ।

#अख़्तर

 

तू बता किधर है ?


तेरे लबों को छू के आनेवाली हवाओं का असर है,
तब ही से यह मेरे अपने लब जाने क्यों बेसबर है ।

इन भूरी आँखों ने दीवाना बना दिया देखते ही,
मैं रहता हूँ इन में सदियों से, यही तो मेरा घर है ।

घनी काली ज़ुल्फ़ों के साए में गुज़रेगी ज़िन्दगी,
कितना सुकून है यहाँ, जैसे कोई प्यारा शज़र है ।

क्यों ढूंढू अब कहीं और मेरी मुहब्बत को मैं,
तेरा दिल जो है वही तो मेरे सपनों का शहर है ।

राहत सिर्फ़ तेरे साथ में होने से मिलती है ‘अख़्तर’,
आ की बैठा हूँ इंतेज़ार में तेरे, तू बता किधर है ?

#अख़्तर_खत्री

 
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Posted by on ઓક્ટોબર 21, 2019 માં Dr. Akhtar Khatri, Poems / कविताए

 

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शानदार बात


एक बार संख्या 9 ने 8 को थप्पड़ मारा
8 रोने लगा
पूछा मुझे क्यों मारा ..?

9 बोला : मैं बड़ा हु इसीलए मारा

सुनते ही 8 ने 7 को मारा
और 9 वाली बात दोहरा दी

7 ने 6 को
6 ने 5 को
5 ने 4 को
4 ने 3 को
3 ने 2 को
2 ने 1 को

अब 1 किसको मारे 1 के निचे तो 0 था!

1 ने उसे मारा नहीं
बल्कि प्यार से उठाया
और उसे अपनी बगल में
बैठा लिया

जैसे ही बैठाया…
उसकी ताक़त 10 हो गयी..!
और 9 की हालत खराब हो गई.

जिन्दगीं में किसी का साथ काफी हैं,
कंधे पर किसी का हाथ काफी हैं,
दूर हो या पास…क्या फर्क पड़ता हैं,

“अनमोल रिश्तों”
का तो बस “एहसास” ही काफी हैं !
बहुत ही खूबसूरत लाईनें..

किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..!

डरिये वक़्त की मार से,
बुरा वक़्त किसी को बताकर नही आता..!

अकल कितनी भी तेज ह़ो,
नसीब के बिना नही जीत सकती..

बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,
कभी बादशाह नही बन सका…!!”

“ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो,
ना ही तुम अपने कंधे पर सर
रखकर रो सकते हो !

एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है! इसलिये वक़्त उन्हें दो जो
तुम्हे चाहते हों दिल से!

रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर
जीवन अमीर जरूर बना देते है ”

आपके पास मारुति हो या बीएमडब्ल्यू –
सड़क वही रहेगी |

आप टाइटन पहने या रोलेक्स –
समय वही रहेगा |

आपके पास मोबाइल एप्पल का हो या सेमसंग –
आपको कॉल करने वाले लोग नहीं बदलेंगे |

आप इकॉनामी क्लास में सफर करें
या बिज़नस में –
आपका समय तो उतना ही लगेगा |

एक सत्य ये भी है कि धनवानो का आधा धन तो ये जताने में चला जाता है की वे भी धनवान हैं |

कमाई छोटी या बड़ी हो सकती है….
पर रोटी की साईज़ लगभग
सब घर में एक जैसी ही होती है।

शानदार बात:

बदला लेने में क्या मजा है
मजा तो तब है जब तुम
सामने वाले को बदल डालो..||

इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले,
और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले…!!
इसलिए कहा जाता है-

बसना हो तो…
‘ह्रदय’ में बसो किसी के..!

दिमाग’ में तो..
लोग खुद ही बसा लेते है..!!

 
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Posted by on ઓક્ટોબર 20, 2019 માં Sense stories / बोध कथाए

 

एक संवाद लंकेश के साथ


कल सुबह-सुबह रास्ते में एक दस सिर वाला हट्टा कट्टा बंदा अचानक मेरी बाइक के आगे आ गया। जैसे तैसे ब्रेक लगाई और पूछा.. क्या अंकल 20-20 आँखें हैं..फिर भी दिखाई नहीं देता ?

जवाब मिला- थोड़ा तमीज से बोलो, हम लंकेश्वर रावण हैं !

ओह अच्छा ! तो आप ही हो श्रीमान रावण ! एक बात बताओ..ये दस-दस मुंह संभालने थोड़े मुश्किल नहीं हो जाते ? मेरा मतलब शैम्पू वगैरह करते टाइम..यू नो…और कभी सर दर्द शुरू हो जाए तो पता करना मुश्किल हो जाता होगा कि कौनसे सर में दर्द हो रहा है…?

रावण- पहले ये बताओ तुम लोग कैसे डील करते हो इतने सारे मुखोटों से ? हर रोज चेहरे पे एक नया मुखोटा , उस पर एक और मुखोटा , उस पर एक और ! यार एक ही मुंह पर इतने नकाब…थक नहीं जाते ?

अरे-अरे आप तो सिरियस ले गए…मै तो वैसे ही… अच्छा ये बताओ मैंने सुना है आप कुछ ज्यादा ही अहंकारी हो?

रावण- हाहाहाहाहाहाहा….

अब इसमे हंसने वाली क्या बात थी , कोई जोक मारा क्या मैंने ?

रावण- और नहीं तो क्या…एक ‘कलियुगी इन्सान’ के मुंह से ये शब्द सुनकर हंसी नहीं आएगी तो और क्या होगा ? तुम लोग साले एक छोटी मोटी डिग्री क्या ले लो, अँग्रेजी के दो-पाँच अक्षर क्या सीख लो, यूं इतरा के चलते हो जैसे तुमसे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं इस धरती पे ! एक तुम ही समझदार, बाकी सब गँवार ! और मैंने चारों वेद पढ़ के उनपे टीका टिप्पणी तक कर दी ! चंद्रमा की रोशनी से खाना पकवा लिया ! इतने-इतने कलोन बना डाले, दुनिया का पहला विमान और खरे सोने की लंका बना दी ! तो थोड़ा बहुत घमंड कर भी लिया तो कौन आफत आ पड़ी… हैं?

चलो ठीक है बॉस,ये तो जस्टिफ़ाई कर दिया आपने, लेकिन…लेकिन गुस्सा आने पर बदला चुकाने को किसी की बीवी ही उठा के ले गए ! ससुरा मजाक है का ? बीवी न हुई छोटी मोटी साइकल हो गयी…दिल किया, उठा ले गए बताओ !

(एक पल के लिए रावण महाशय तनिक सोच में पड़ गए, मेरे चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आने ही वाली थी कि फिर वही इरिटेटिंग अट्टहास )

हाहाहाहाहाहहह लुक हू इज़ सेइंग ! अबे मैंने श्री राम की बीवी को उठाया, मानता हूँ बहुत बड़ा पाप किया और उसका परिणाम भी भुगता ,पर मेघनाथ की कसम- कभी जबरदस्ती दूर…हाथ तक नहीं लगाया,उनकी गरिमा को रत्ती भर भी ठेस नहीं पहुंचाई और तुम.. तुम कलियुगी इन्सान !! छोटी- छोटी बच्चियों तक को नहीं बख्शते ! अपनी हवस के लिए किसी भी लड़की को शिकार बना लेते हो…कभी जबरदस्ती तो कभी झूठे वादों,छलावों से ! अरे तुम दरिंदों के पास कोई नैतिक अधिकार बचा भी है भी मेरे चरित्र पर उंगली उठाने का ??

फोकट में ही ! इस बार शर्म से सर झुकाने की बारी मेरी थी…पर मै भी ठहरा पक्का ‘इन्सान’ ! मज़ाक उड़ाते हुए बोला…अरे जाओ-जाओ अंकल ! दशहरा कल ही है, सारी हेकड़ी निकाल देंगे देखना…

(और इस बार लंकवेशवर जी इतनी ज़ोर से हँसे कि मै गिरते-गिरते बचा !)

यार तुम तो नवजोत सिंह सिद्धू के भी बाप हो ,बिना बात इतनी ज़ोर ज़ोर  से काहे हँसते हो…ऊपर से एक भी नहीं दस-दस मुंह लेके, कान का पर्दा फाड़ दो, जरा और ज़ोर से हंसो तो !

रावण- यार तुम बात ही ऐसी करते हो । वैसे कमाल है तुम इन्सानो की भी..विज्ञान में तो बहुत तरक्की कर ली पर कॉमन सैन्स ढेले का भी नहीं ! हर साल मेरा पुतला भर जला के खुश हो जाते हो और मैं कहीं ना कहीं तुम सब के अंदर ही मौजूद रहता हूँ !! वैसे अब तो मुझे ही घुटन सी होने लगी है तुम लोगों के अंदर रह कर…मै खुद ही चला जाऊंगा जल्दी ही ! डोंट वरी !

इतनी बेज्जती के बाद अब कुछ जवाब देने को बचा नहीं था मेरे पास, चुपचाप बाइक स्टार्ट की और खिसक लिया ।

 
1 ટીકા

Posted by on ઓક્ટોબર 8, 2019 માં SELF / स्वयं

 

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