Monthly Archives: ઓક્ટોબર 2014
शुभ दिपावली
रात का समय था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था , नज़दीक ही एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल रही थीं। एकांत पा कर आज वे एक दुसरे से दिल की बात कर रही थीं।
पहली मोमबत्ती बोली, ” मैं शांति हूँ , पर मुझे लगता है अब इस दुनिया को मेरी ज़रुरत नहीं है , हर तरफ आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और नहीं रह सकती। …”और ऐसा कहते हुए , कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गयी।
दूसरी मोमबत्ती बोली , ” मैं विश्वास हूँ , और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत नहीं है , मैं भी यहाँ से जा रही हूँ …” , और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी…
तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली , ” मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की ताकत है, पर आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही नहीं, दूसरों से तो दूर लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं ,मैं ये सब और नहीं सह सकती मैं भी इस दुनिया से जा रही हूँ….” और ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।
वो अभी बुझी ही थी कि एक मासूम बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ। मोमबत्तियों को बुझे देख वह घबरा गया , उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे और वह रुंआसा होते हुए बोला , “अरे , तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही ,
तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच मेंहमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”
तभी चौथी मोमबत्ती बोली , ” प्यारे बच्चे घबराओ नहीं, मैं आशा हूँ और जब तक मैं जल रही हूँ हम बाकी मोमबत्तियों को फिर से जला सकते हैं।”
यह सुन बच्चे की आँखें चमक उठीं, और उसने आशा के बल पे शांति, विश्वास, और प्रेम को फिर से प्रकाशित कर दिया।
जब सबकुछ बुरा होते दिखे ,चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार नज़र आये , अपने भी पराये लगने लगें तो भी उम्मीद मत छोड़िये….आशा मत छोड़िये , क्योंकि इसमें इतनी शक्ति है कि ये हर खोई हुई चीज आपको वापस दिल सकती है।
अपनी आशा की मोमबत्ती को जलाये रखिये ,बस अगर ये जलती रहेगी तो आप किसी भी और मोमबत्ती को प्रकाशित कर सकते हैं।
उजाले के इस त्योहार पर आपको यही पंक्तियां भेंट कर के एक छोटी सी कोशिश कर रहा हूं ताकि आपकी जिंदगी में इन चारों मोमबत्तीयों की रौशनी हमेशा फैली रहे |
शुभ दिपावली
… वक़्त नहीं लगता.
घर बनाने में वक़्त लगता है,
पर मिटाने में पल नहीं लगता.
दोस्ती बड़ी मुश्किल से बनती हैं,
पर दुश्मनी में वक़्त नहीं लगता.
गुज़र जाती है उम्र रिश्ते बनाने में,
पर बिगड़ने में वक़्त नहीं लगता.
जो कमाता है महीनों में आदमी,
उसे गंवाने में वक़्त नहीं लगता.
पल पल कर उम्र पाती है ज़िंदगी,
पर मिट जाने में वक़्त नहीं लगता.
जो उड़ते हैं अहम के आसमानों में,
जमीं पर आने में वक़्त नहीं लगता.
हर तरह का वक़्त आता है ज़िंदगी में,
वक़्त के गुज़रने में वक़्त नहीं लगता….
…मैने दिवाली को मरते देखा.
पटाखो कि दुकान से दूर हाथों मे,
कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा…
एक गरीब बच्चे कि आखों मे,
मैने दिवाली को मरते देखा.
थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की…
पर उन्ही पूराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा.
तुमने देखा कभी चाँद पर बैठा पानी?
मैने उसके रुखसर पर बैठा देखा.
हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश…
उसे चूप-चाप ग़मो को पीते देखा.
थे नही माँ-बाप उसके..
उसे माँ का प्यार और पापा के हाथों की कमी मेहंसूस करते देखा.
जब मैने कहा, “बच्चे, क्या चहिये तुम्हे”?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर “ना” मे सिर हिलाते देखा.
थी वह उम्र बहुत छोटी अभी…
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा
रात को सारे शहर कि दीपो कि लौ मे…
मैने उसके हसते, मगर बेबस चेहरें को देखा.
हम तो जीन्दा है अभी शान से यहा.
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा.
नामकूल रही दिवाली मेरी…
जब मैने जिदगी के इस दूसरे अजीब से पहेलु को देखा.
कोई मनाता है जश्न
और कोई रेहता है तरसता…
मैने वो देखा..
जो हम सब ने देख कर भी नही देखा.
लोग कहते है, त्योहार होते है जिदगी मे खूशीयो के लिए,
तो क्यो मैने उसे मन ही मन मे घूटते और तरसते देखा ?
Source: Whatsap msg
એવું હવે ક્યાં કરી શકાય છે ?
ઘોડિયે નહીં તો કંઈ નહીં પણ
ઝૂલે તો હજુ ઝૂલી શકાય છે ,
પણ ભૂખ લાગે તો ક્યાં ફરી
મોંમાં અંગુઠો લઇ ચૂસાય છે ?
કંઇક શીખવાની જીજ્ઞાસા લઇ
ફરી સ્કૂલ કોલેજ જઈ શકાય છે ,
પણ દફતર ફેંકી રમવા દોડવું
એવું હવે ક્યાં કરી શકાય છે ?
ઝાડ પર નહીં તો કોલર ટયુનમાં
કોયલ- ટહુકા સાંભળી શકાય છે ,
પણ અમથું અમથું ક્યાં ફરીથી કોયલ સંગ ટહુકી શકાય છે ?
મિત્રો સંગે તાળી દઈ હજુ એ
જોને ખિલખિલ હસી શકાય છે ,
પણ મનગમતી ચીજ મેળવવા
ક્યાં હવે ભેંકડો તાણી રડાય છે ?
જા તારી કિટ્ટા છે કહીને હજુ એ
પળમાં દુશ્મની કરી શકાય છે ,
પણ બીજી જ પળે બુચ્ચા કરીને
ક્યાં કોઈને ય મનાવી શકાય છે ?
મોટા થવાની ઈચ્છા કરીને જુઓ
ઝટ મોટા તો થઇ જવાય છે ,
પણ ફરી પાછું નાના થઇ જવું ?
ક્યાં કોઈનાથી પણ થવાય છે???
विष्णु जी और लक्ष्मीजी संवाद
लक्ष्मी जी :
सारा संसार पैसे (मेरे) से चल रहा है,
अगर मैं नहीं तो कुछ नहीं …….
विष्णु जी (मुस्कुरा के) :
सिद्ध करके दिखाओ .
लक्ष्मी जी ने पृथ्वी पर एक शवयात्रा का दृश्य दिखया – जिसमे लोग शव पर पैसा फेंक रहे थे,
कुछ लोग उस पैसे को लूट रहे थे,
तो कुछ बटोर रहे थे
तो कोई छीन रहा था..
लक्ष्मी जी :
देखा …..
कितनी कीमत है पैसों की…
विष्णु जी:
परन्तु लाश नहीं उठी पैसे उठाने के लिए..??
लक्ष्मी जी:
अरे ……
लाश कैसे उठेगी वो तो मरी हुई है…
बेजान है ..!!
तब विष्णु जी ने बड़ा खूबसूरत जवाब दिया…
बोले :
जब तक मैं (प्राण) शरीर में हूं..
तब तक ही तेरी कीमत है।
और जैसे ही मैं शरीर से निकला..
तेरी कोई कीमत नहीं है…!!
श्रीकृष्ण की माया
सुदामा ने एक बार श्रीकृष्ण ने पूछा कान्हा, मैं आपकी माया के दर्शन करना चाहता हूं… कैसी होती है?”
श्री कृष्ण ने टालना चाहा, लेकिन सुदामा की जिद पर श्री कृष्ण ने कहा, “अच्छा, कभी वक्त आएगा तो बताऊंगा|”
और फिर एक दिन कहने लगे… सुदामा, आओ, गोमती में स्नान करने चलें| दोनों गोमती के तट पर गए| वस्त्र उतारे| दोनों नदी में उतरे… श्रीकृष्ण स्नान करके तट पर लौट आए| पीतांबर पहनने लगे… सुदामा ने देखा, कृष्ण तो तट पर चला गया है, मैं एक डुबकी और लगा लेता हूं… और जैसे ही सुदामा ने डुबकी लगाई… भगवान ने उसे अपनी माया का दर्शन कर दिया|
सुदामा को लगा, गोमती में बाढ़ आ गई है, वह बहे जा रहे हैं, सुदामा जैसे-तैसे तक घाट के किनारे रुके| घाट पर चढ़े| घूमने लगे| घूमते-घूमते गांव के पास आए| वहां एक हथिनी ने उनके गले में फूल माला पहनाई| सुदामा हैरान हुए| लोग इकट्ठे हो गए| लोगों ने कहा, “हमारे देश के राजा की मृत्यु हो गई है| हमारा नियम है, राजा की मृत्यु के बाद हथिनी, जिस भी व्यक्ति के गले में माला पहना दे, वही हमारा राजा होता है| हथिनी ने आपके गले में माला पहनाई है, इसलिए अब आप हमारे राजा हैं|”
सुदामा हैरान हुआ| राजा बन गया| एक राजकन्या के साथ उसका विवाह भी हो गया| दो पुत्र भी पैदा हो गए| एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार पड़ गई… आखिर मर गई… सुदामा दुख से रोने लगा… उसकी पत्नी जो मर गई थी, जिसे वह बहुत चाहता था, सुंदर थी, सुशील थी… लोग इकट्ठे हो गए… उन्होंने सुदामा को कहा, आप रोएं नहीं, आप हमारे राजा हैं… लेकिन रानी जहां गई है, वहीं आप को भी जाना है, यह मायापुरी का नियम है| आपकी पत्नी को चिता में अग्नि दी जाएगी… आपको भी अपनी पत्नी की चिता में प्रवेश करना होगा… आपको भी अपनी पत्नी के साथ जाना होगा|
सुना, तो सुदामा की सांस रुक गई… हाथ-पांव फुल गए… अब मुझे भी मरना होगा… मेरी पत्नी की मौत हुई है, मेरी तो नहीं… भला मैं क्यों मरूं… यह कैसा नियम है? सुदामा अपनी पत्नी की मृत्यु को भूल गया… उसका रोना भी बंद हो गया| अब वह स्वयं की चिंता में डूब गया… कहाभी, ‘भई, मैं तो मायापुरी का वासी नहीं हूं… मुझ पर आपकी नगरी का कानून लागू नहीं होता… मुझे क्यों जलना होगा|’ लोग नहीं माने, कहा, ‘अपनी पत्नी के साथ आपको भी चिता में जलना होगा… मरना होगा… यह यहां का नियम है|’ आखिर सुदामा ने कहा, ‘अच्छा भई, चिता में जलने से पहले मुझे स्नान तो कर लेने दो…’ लोग माने नहीं… फिर उन्होंने हथियारबंद लोगों की ड्यूटी लगा दी… सुदामा को स्नान करने दो… देखना कहीं भाग न जाए…
रह-रह कर सुदामा रो उठता| सुदामा इतना डर गया कि उसके हाथ-पैर कांपने लगे… वह नदी में उतरा… डुबकी लगाई… और फिर जैसे ही बाहर निकला… उसने देखा, मायानगरी कहीं भी नहीं, किनारे पर तो कृष्ण अभी अपना पीतांबर ही पहन रहे थे… और वह एक दुनिया घूम आया है| मौत के मुंह से बचकर निकला है…सुदामा नदी से बाहर आया… सुदामा रोए जा रहा था|
श्रीकृष्ण हैरान हुए… सबकुछ जानते थे… फिर भी अनजान बनते हुए पूछा, “सुदामा तुम रो क्यों रो रहे हो?”सुदामा ने कहा, “कृष्ण मैंने जो देखा है, वह सच था या यह जो मैं देख रहा हूं|” श्रीकृष्ण मुस्कराए, कहा, “जो देखा, भोगा वह सच नहीं था| भ्रम था… स्वप्न था… माया थी मेरी और जो तुम अब मुझे देख रहे हो… यही सच है… मैं ही सच हूं…मेरे से भिन्न, जो भी है, वह मेरी माया ही है| और जो मुझे ही सर्वत्र देखता है,महसूस करता है, उसे मेरी माया स्पर्श नहीं करती| माया स्वयं का विस्मरण है…माया अज्ञान है, माया परमात्मा से भिन्न… माया नर्तकी है… नाचती है… नाचती है… लेकिन जो श्रीकृष्ण से जुड़ा है, वह नाचता नहीं… भ्रमित नहीं होता… माया से निर्लेप रहता है, वह जान जाता है, सुदामा भी जान गया था… जो जान गया वह श्रीकृष्ण से अलग कैसे रह सकता है!!!!
( 548 ) છેલ્લે તો આપણે બે જ હોઈશું… ઘડપણનું કાવ્ય … કવી મૃગાંક શાહ
ઘડપણ વિશેના ૧૩ લેખોને આવરી લેતી પોસ્ટ નમ્બર 547 ના અનુસંધાન રૂપે શ્રી ઉત્તમભાઈ
ગજ્જર એ એમના ઈ-મેલમાં મોકલેલ કવી મૃગાંક શાહ રચિત કાવ્ય રચના
” છેલ્લે તો આપણે બે જ હોઈશું” ,એમના આભાર સાથે આજની પોસ્ટમાં પ્રસ્તુત છે .
બે વર્ષ પહેલાં કવી મૃગાંક શાહે રચેલી નીચેની રચના ભારે લોકપ્રીય બની હતી.
એમના પ્રથમ કાવ્યસંગ્રહ(‘વજુદ’)ના ચોથા ટાઈટલ પેજ પર તે હતી.
છેલ્લે તો આપણે બે જ હોઈશું…
ભલે ઝગડીએ, ક્રોધ કરીએ,
એકબીજા પર તુટી પડીએ,
એકબીજા પર દાદાગીરી કરવા, છેલ્લે તો આપણે બે જહોઈશું.
જે કહેવું હોય એ કહી લે,
જે કરવું હોય એ કરી લે,
એકબીજાનાં ચોકઠાં(ડેન્ચર) શોધવા છેલ્લે તો આપણે બે જહોઈશું.
હું રીસાઈશ તો તું મનાવજે,
તું રીસાઈશ તો હું મનાવીશ,
એકબીજાને લાડ લડાવવા, છેલ્લે તો આપણે બે જ હોઈશું.
આંખો જયારે ઝાંખી થશે,
યાદશક્તી પણ પાંખી થશે,
ત્યારે, એકબીજાને એકબીજામાં શોધવા, છેલ્લે તો આપણે બે જ હોઈશું.
ઘુંટણ જ્યારે દુઃખશે,
કેડ પણ વળવાનું મુકશે,
ત્યારે એકબીજાના પગના નખ કાપવા, છેલ્લે તો આપણે બે જ હોઈશું.
‘મારા રીપોર્ટસ્ તદ્દન નોર્મલ…
View original post 203 more words
પણ હું તો તને પ્રેમ કરું છું
પ્રેમ કરું છું, પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું,
જાણું નહીં કે કેટલો ને કેમ કરું છું.
વધતો રહે છે, સહેજ પણ ઘટતો નથી કદી
છલકાતો જાય છે, હું જેમ જેમ કરું છું.
પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું…
દિવસો વીતી રહે છે તને જોઈ જોઈને,
રાતો પસાર હું જેમ-તેમ કરું છું.
પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું…
ખીલતો રહું છું હુંય ને ખૂલતો જઉં છું હું,
ગમતું રહે છે જેમ તને હું તેમ કરું છું.
પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું…
પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું…
પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું…
પ્રેમ કરું છું, પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું,
જાણું નહીં કે કેટલો ને કેમ કરું છું.
વધતો રહે છે, સહેજ પણ ઘટતો નથી કદી
છલકાતો જાય છે, હું જેમ જેમ કરું છું.
પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું…
દિવસો વીતી રહે છે તને જોઈ જોઈને,
રાતો પસાર હું જેમ-તેમ કરું છું.
પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું…
ખીલતો રહું છું હુંય ને ખૂલતો જઉં છું હું,
ગમતું રહે છે જેમ તને હું તેમ કરું છું.
પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું…
પણ, હું તો તને પ્રેમ કરું છું…
एक संवाद लंकेश के साथ
कल सुबह-सुबह रास्ते में एक दस सिर वाला हट्टा कट्टा बंदा अचानक मेरी बाइक के आगे आ गया। जैसे तैसे ब्रेक लगाई और पूछा.. क्या अंकल 20-20 आँखें हैं..फिर भी दिखाई नहीं देता ?
जवाब मिला- थोड़ा तमीज से बोलो, हम लंकेश्वर रावण हैं !
ओह अच्छा ! तो आप ही हो श्रीमान रावण ! एक बात बताओ..ये दस-दस मुंह संभालने थोड़े मुश्किल नहीं हो जाते ? मेरा मतलब शैम्पू वगैरह करते टाइम..यू नो…और कभी सर दर्द शुरू हो जाए तो पता करना मुश्किल हो जाता होगा कि कौनसे सर में दर्द हो रहा है…?
रावण- पहले ये बताओ तुम लोग कैसे डील करते हो इतने सारे मुखोटों से ? हर रोज चेहरे पे एक नया मुखोटा , उस पर एक और मुखोटा , उस पर एक और ! यार एक ही मुंह पर इतने नकाब…थक नहीं जाते ?
अरे-अरे आप तो सिरियस ले गए…मै तो वैसे ही… अच्छा ये बताओ मैंने सुना है आप कुछ ज्यादा ही अहंकारी हो?
रावण- हाहाहाहाहाहाहा….
अब इसमे हंसने वाली क्या बात थी , कोई जोक मारा क्या मैंने ?
रावण- और नहीं तो क्या…एक ‘कलियुगी इन्सान’ के मुंह से ये शब्द सुनकर हंसी नहीं आएगी तो और क्या होगा ? तुम लोग साले एक छोटी मोटी डिग्री क्या ले लो, अँग्रेजी के दो-पाँच अक्षर क्या सीख लो, यूं इतरा के चलते हो जैसे तुमसे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं इस धरती पे ! एक तुम ही समझदार, बाकी सब गँवार ! और मैंने चारों वेद पढ़ के उनपे टीका टिप्पणी तक कर दी ! चंद्रमा की रोशनी से
खाना पकवा लिया ! इतने-इतने कलोन बना डाले, दुनिया का पहला विमान और खरे सोने की लंका बना दी ! तो थोड़ा बहुत घमंड कर भी लिया तो कौन आफत आ पड़ी… हैं?
चलो ठीक है बॉस,ये तो जस्टिफ़ाई कर दिया आपने, लेकिन…लेकिन गुस्सा आने पर बदला चुकाने को किसी की बीवी ही उठा के ले गए ! ससुरा मजाक है का ? बीवी न हुई छोटी मोटी साइकल हो गयी…दिल किया, उठा ले गए बताओ !
(एक पल के लिए रावण महाशय तनिक सोच में
पड़ गए, मेरे चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आने
ही वाली थी कि फिर वही इरिटेटिंग अट्टहास )
हाहाहाहाहाहहह लुक हू इज़ सेइंग ! अबे मैंने श्री राम की बीवी को उठाया, मानता हूँ बहुत बड़ा पाप किया और उसका परिणाम भी भुगता ,पर मेघनाथ की कसम- कभी जबरदस्ती दूर…हाथ तक नहीं लगाया,उनकी गरिमा को रत्ती भर भी ठेस नहीं पहुंचाई और तुम.. तुम कलियुगी इन्सान !! छोटी- छोटी बच्चियों तक को नहीं बख्शते ! अपनी हवस के लिए किसी भी लड़की को शिकार बना लेते हो…कभी जबरदस्ती तो कभी झूठे वादों,छलावों से ! अरे तुम दरिंदों के पास कोई नैतिक अधिकार बचा भी है भी मेरे चरित्र पर उंगली उठाने का ??
फोकट में ही ! इस बार शर्म से सर झुकाने की बारी मेरी थी…पर मै भी ठहरा पक्का ‘इन्सान’ ! मज़ाक उड़ाते हुए बोला…अरे जाओ-जाओ अंकल ! दशहरा कल ही है, सारी हेकड़ी निकाल देंगे देखना…
(और इस बार लंकवेशवर जी इतनी ज़ोर से हँसे
कि मै गिरते-गिरते बचा !)
यार तुम तो नवजोत सिंह सिद्धू के भी बाप हो ,बिना बात इतनी ज़ोर ज़ोर से काहे हँसते हो…ऊपर से एक भी नहीं दस-दस मुंह लेके, कान का पर्दा फाड़ दो, जरा और ज़ोर से हंसो तो !
रावण- यार तुम बात ही ऐसी करते हो । वैसे कमाल है तुम इन्सानो की भी..विज्ञान में तो बहुत तरक्की कर ली पर कॉमन सैन्स ढेले का भी नहीं ! हर साल मेरा पुतला भर जला के खुश हो जाते हो और मैं कहीं ना कहीं तुम सब के अंदर ही मौजूद
रहता हूँ !! वैसे अब तो मुझे ही घुटन सी होने लगी है तुम लोगों के अंदर रह कर…मै खुद ही चला जाऊंगा जल्दी ही ! डोंट वरी !
इतनी बेज्जती के बाद अब कुछ जवाब देने को बचा ही नहीं था मेरे पास, चुपचाप बाइक स्टार्ट की और खिसक लिया ।
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है..
कुछ जिद्दी, कुछ नक्चढ़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
अपनी हर बात अब मनवाने लगी है
हमको ही अब वो समझाने लगी है
हर दिन नई नई फरमाइशें होती है
लगता है कि फरमाइशों की झड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
अगर डाँटता हूँ तो आखें दिखाती है
खुद ही गुस्सा करके रूठ जाती है
उसको मनाना बहुत मुश्किल होता है
गुस्से में कभी पटाखा कभी फुलझड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
जब वो हँसती है तो मन को मोह लेती है
घर के कोने कोने मे उसकी महक होती है
कई बार उसके अजीब से सवाल भी होते हैं
बस अब तो वो जादू की छड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
घर आते ही दिल उसी को पुकारता है
सपने सारे अब उसी के संवारता है
दुनियाँ में उसको अलग पहचान दिलानी है
मेरे कदम से कदम मिलाकर वो खड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है…
(Source: Whatsapp group)
બેસ્ટ ગુજરાતી બ્લૉગ સર્વેક્ષણ ૨૦૧૪
પ્યારા મિત્રો,
ગુજરાતી બ્લોગ જગતમાં બેસ્ટ કહી શકાય તેવા બ્લોગ કયા અને કેટલા ? શ્રી વિનય ખત્રીનાં બ્લોગ ફનગ્યાન ઉપર બેસ્ટ ગુજરાતી બ્લૉગ સર્વેક્ષણ ૨૦૧૪ માટેના નોમિનેશન લેવાનું શરૂ કર્યું છે. સરેક્ષણમાં ભાગ લેવાની છેલ્લી તારીખ છે ૧૮ ઑક્ટોબર. સર્વેક્ષણના તારણો ધનતેર્સ ૨૧ ઑક્ટોબરના રજુ થશે.
આ સર્વેમાં ભાગ લેવા માટે ક્લિક: http://funngyan.com/bgbs14/ કરો અને સર્વેક્ષણમાં ભાગ લેવાની વધુ વિગત મેળવો.