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Monthly Archives: જાન્યુઆરી 2014

डर के आगे ही जीत है…


एक गुंडा शेविंग और हेयर कटिंग कराने के लिये सैलून में गया.

नाई से बोला -”अगर मेरी शेविंग ठीक से से बिना कटे छंटे की तो मुहमाँगा दाम दूँगा ! अगर कहीं भी कट गया तो गर्दन उड़ा दूंगा !” नाई ने डर के मारे मना कर दिया.

गुंडा शहर के दूसरे नाइयों के पास गया और वही बात कही.लेकिन सभी नाईयो ने डर के मारे मना कर दिया.

अंत में वो गुंडा एक गाँव के नाई के पास पहुँचा. वह काफी कम उम्र का लड़का था. उसने कहा – “ठीक है, बैठो मैं बनाता हूँ”.

उस लड़के ने काफी बढ़िया तरीके से गुंडे की शेविंग और हेयर कटिंग कर दी.गुंडे ने खुश होकर लड़के को दस हजार रूपये दिए. और पूछा – “तुझे अपनी जान जाने का डर नहीं था क्या ?”

लड़के ने कहा – “डर ? डर कैसा…? पहल तो मेरे हाथ में थी…”.

गुंडे ने कहा – “‘पहल तुम्हारे हाथ में थी’ .. मैं मतलब नहीँ समझा ?”

लड़के ने हँसते हुये कहा –: “भाईसाहब, उस्तरा तो मेरे हाथ में था…अगर आपको खरोंच भी लगती तो आपकी गर्दन तुरंत काट देता !!!”

बेचारा गुंडा ! यह जवाब सुनकर पसीने से लथपथ हो गया।

Moral : जिन्दगी के हर मोड पर खतरो से खेलना पडता है नही खेलोगे तो कुछ नही कर पाओगे यानि डर के आगे ही जीत है…

 

…જિંદગી,


હવે તો ફક્ત તારી યાદ છે જિંદગી,
તેથીજ તો હજું આબાદ છે જિંદગી.
જ્યાં તું અને હું જ સાથે છીએ ફક્ત,
કલ્પનાનો ફક્ત સંવાદ છે જિંદગી. 

સંભળાય દરેક ક્ષણે, બધીંજ બાજું,
તારા નામનો એક નાદ છે જિંદગી.

એ ક્ષણ જયારે મળ્યાં હતાં આપણે,
પહેલી નજરનો ઉન્માદ છે જિંદગી.

આંવ કે ખુંટી રહ્યો સમય ‘અખ્તર’,
તારા વિના તો બરબાદ છે જિંદગી.

 
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Posted by on જાન્યુઆરી 15, 2014 માં Dr. Akhtar Khatri, Poems / कविताए

 

પ્રેમ – પાંચમો વેદ


હેમનું હલકું ફૂલકું...

પ્રયત્નનાં પ્રાંગણમાં ફેલાયેલું અજવાળું આજે કઇંક જુદો જ ઈશારો કરી રહ્યું હતું ..ને આખી રાતના ઉજાગરા પછી  થોડીક વાર માટે મીંચાયેલી અધમૂઇ આંખો આ અજવાળાથી અંજાઈ ગઈ હતી .

            શું હતું આ રાત ઉજાગરાનું કારણ કે જેનું કોઈ જ મારણ ન હતું. અમથે અમથી નાની વાત , વટે ચડીને  શિયાળામાં થીજી ગયેલી રૂ ની વાટ જેવી થઈ ગઈ હતી . એક દિવાસળીની આગ હવે એને પ્રજ્વલ્લિત કરવા અક્ષમ છે કોણ જાણે કેટલી દિવાસળી તેની જાતને જલાવશે આ વાતને રાખ કરવા॰…ને રાખ થશે કે કેમ એ  સવાલ છે..ડર છે કે જલી ગયેલી સીંદરી જેવા હાલ ન થાય..કે જલી તો જાય પણ વળ ન છોડે.ખેર મગજના દરવાજા બંધ થઈ ગયા છે દિલના દરવાજામાંથી જ આ આવન જાવન થઈ રહી છે….કોની ? ના સમજ્યા ?

         પ્રેમ નામના સંબંધની દોર આજે લક્ષ્મણ ઝુલાની જેમ બે સમાન તથ્યો વચ્ચે ઝૂલી રહી છે, બંને પક્ષે કારણો સરખા પરંતુ તારણો જુદા જુદા.સમાંતરે વહેતા ખ્યાલોના મૂળને…

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Posted by on જાન્યુઆરી 11, 2014 માં Uncategorized

 

” वक़्त नहीं “


हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में ,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं .
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं ..
सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं .
गैरों की क्या बात करें ,
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं .
आखों में है नींद भरी ,
पर सोने का वक़्त नहीं .
दिल है ग़मो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
कि थकने का भी वक़्त नहीं .
पराये एहसानों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
कि हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिये भी वक़्त नहीं…

 
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Posted by on જાન્યુઆરી 10, 2014 માં Poems / कविताए

 

….તો શું કરવું ?


સાપ કરડે તો દવા થાય ,
ખાલીપો કરડે તો શું કરવું ?

ભૂત વળગે તો મંતર થાય ,
લોભ વળગે તો શું કરવું ?

પાણી છલકે તો ઢોળી દેવાય ,
લાચારી છલકે તો શું કરવું

આગ ભડકે તો પાણી નખાય ,
ઇચ્છાઓ ભડકે તો શું કરવું ?

માલ ખડકે તો વેચી દેવાય ,
ચિંતાઓ ખડકે તો શું કરવું ?

વિચાર અટકે તો ફરીથી કરાય ,
શ્વાસ અટકે તો શું કરવું ?

ગળું તરસે તો પાણી પીવાય ,
દિલ તરસે તો શું કરવું ?

ઘર સળગે તો વીમો લેવાય ,
સપના સળગે તો  શું કરવું ?

આભ વરસે તો છત્રી લેવાય ,
આંખો વરસે to શું કરવું ?

સિંહ ગરજે તો ભાગી જવાય ,
અહંકાર ગરજે તો શું કરવું ?

શરીર ભડકે તો રોકી લેવાય ,
મન ભડકે તો શું કરવું ?

કાંટો ખટકે તો કાઢી લેવાય ,
કોઈ વાત ખટકે તો શું કરવું ?

માણસ મલકે તો ખુશી થાય ,
મૌત મલકે તો શું કરવું ?

પીડા છલકે તો ગોળી લેવાય ,
વેદના છલકે તો શું કરવું ?

અજગર જકડે તો છૂટી જવાય ,
લત જકડે તો શું કરવું ?

પોલીસ પકડે તો જામીન થાય ,
જીદ પકડે તો શું કરવું…!!!

 

काँच की बरनी और दो कप चाय


जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी – जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , ” काँच की बरनी और दो कप चाय ” हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं …

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची … उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ …आवाज आई … फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे – छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे – धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ … कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले – हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा ..

सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई …

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ….टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और रेत का मतलब और भी छोटी – छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है .. अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी … ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है …यदि तुम छोटी – छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा …

मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है। अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक – अप करवाओ …
टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है …पहले तय करो कि क्या जरूरी है …बाकी सब तो रेत है।

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे ..अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि ” चाय के दो कप ” क्या हैं ?

प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया … इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे ,लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

( अपने खास मित्रों और निकट के व्यक्तियों को यह विचार तत्काल बाँट दो .. मैंने अभी – अभी यही किया है)

 
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Posted by on જાન્યુઆરી 8, 2014 માં Sense stories / बोध कथाए